पर्यावरण, संरक्षण में महिलाओं को योगदान

– श्रीमती कमल चन्द्रा

पर्यावरण क्या है ?

सरल सी भाषा में अगर समझें तो…

परि (बाहरी), आवरण (कवर) परिआवरण = पर्यावरण कहलाता है.

अर्थात, हमारे आसपास के वातावरण वायुमंडल में “जीव” और “निर्जीव”, “भौतिक” और “अभौतिक” जो भी परिस्थितियाँ हैं पर्यावरण कहलाती हैं और ये सभी अविभाज्य हैं किन्तु आपस में प्रक्रति के अद्रश्य चक्र से जुड़े हुए हैं।

भोजन (फूड), पानी (वाटर), आश्रय (शेल्टर), प्रकृति में मिलकर वृद्धि और विकास के लिए लगातार आपसी क्रिया करते रहते हैं इसे ही पर्यावरण के रूप में जानते हैं।

प्राकर्तिक रूप में पारिस्थितिकी (इकोलॉजी), और पारिस्थितिकीय तन्त्र (इकोसिस्टम), जीवन के पर्यावरण का सजीव उदहारण है। पर्यावरण में शामिल यही पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक (नेचुरल) या कृत्रिम (आर्टिफीसियल), जल थल पर कही भी हो सकता है। इसी प्रकार कृत्रिम रूप में भी पर्यावरण को तैयार क्या जा सकता है जो कि क्रॉपलैंड, गार्डन, पार्क या एक्वेरियम में हो सकते हैं।

पर्यावरण की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी ही नहीं अपितु यह सभी का मौलिक कर्तव्य भी है जो हमें अपने आने वाली पीढ़ियों के लिया सुरक्षित करना ही होगा ।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 51A (g) के अनुसार भी यह प्रत्येक नागरिक का मूल कर्तव्य होगा कि वह-

प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अन्तर्गत वन, झील नदी और वन्य जीव हैं, की रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखेय वहीं संविधान के अनुच्छेद 48A में राज्य की जिम्मेदारी भी निर्धारित की गयी है जो कहती है कि……

राज्य, देश के पर्यावरण के संरक्षण तथा संवर्धन का और वन तथा वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।

पेय जल जीव जन्तु, मनुष्य वनस्पति मिट्टी एवं जीवाणु उक्त सभी जीवनधारा प्रणाली में अदृश्य रूप में एक दूसरे से जुड़े हुये रहते है। और यही व्यवस्था पर्यावरण कहलाती है। पर्यावरण उपर्युक्त सभी प्रणाली में आवरण के रूप में सुरक्षा प्रदाय करता है।

आधुनिक युग में सकल विश्व उन्नति के पथ पर अग्रसर है। अनेक वैज्ञानिक तकनीकी के सहयोग से प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेकर उन पर अलम किया जा रहा है। प्रगति का इस दौड़ या एक प्रकार से प्रतिस्पर्धा में अनायास ही हम पर्यावरण से हते जा रहे हैं, तथा उसके प्रति लापरवाह हो रहे हैं। सन 1980 के दशक में भारत में शैनें शैनः वों के विकास को गतिशीलता मिली, उस समय भी जहां एक ओर समाज सेवी संस्थाओं आम नागरिकों के साथ मिलकर पर्यावरण समितियां गठित कर जन-सामान्य को सचेत कर रहे थे, वहीं दूसरी और कुछ असामाजिक तत्व मूक, किन्तु प्राणदायक वृक्षों पर कुल्हाड़ाघात (कुठराघात) करने से नही चूक रहे थे। प्रकृति की इस पीड़ा के विषय में कोई भी नहीं सोच रहा था। जहां मानव को नही बख्शता वहां जंगलो की कौन है? पर्यावरण की असंतुलित असहाय पीड़ा के परिणामों ने यह सिद्ध कर दिया है कि, पर्यावरण नही तो जीवन नहीं।

इसके प्रत्यक्ष प्रणा कलयुगी काल के रूप में आ रहे भूकम्प और जल प्लावन है। पूर्व में रही शस्य श्यामला हरित वसुन्धरा आज अपनी दूर्दशा पी चीत्कार कर रही है।

उजड़ी धरती करे पुकार ।
वृक्ष लगाकर करो श्रृंगार ।।

अब समय आ गया है। कि हम प्रकृति के वृक्ष स्थल पर हुए घावों पर अपनी सजगता और चेतना की मरहम लगायें। कुछ ठोस निर्णय लें और यदि यह भी न कर सकें तो हम कम से कम जो लोग इस दिशा में कार्यरत हैं, उनके हाथ मजबूत करें। ‘वर्ल्ड वाइल्ड लाइफ फण्ड’, ‘बावे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी’ स्वेच्छिक संस्थान जैसे अनेकानेक संगठन हैं जो प्रकृति के इस उजड़ते अस्तिव को बचाने में सतत् प्रयासरत है।

प्रकृति द्वारा प्रदत्त अमूल्यनिधि का मानव द्वारा युक्तियुक्त प्रयोग किया जाना अपेक्षित है। पर्यावरण संबंधी चेतना सन् 1960 के दशक मे विश्व पटल पर उभरी। बैरी कामनर, जॉय फॉरेस्टर, मेडिओज आदि सामाजिक विज्ञान बेत्ताओं ने अपनी कृतियों के माध्यम से विश्व समुदाय को सचते किया कि, यदि यही विनाशलीला रही तो समूची मानव जाति का अस्तितव खतेरे में पड़ जायेगा आर्थिक खतरे में पड जायेगा। आर्थिक विकास के लिए वनों के विनाश पर रोम क्लब के प्रतिवेदन पर प्रशन चिन्ह लगाया गया। अर्थ शास्त्रियों, पर्यावरण विदों विज्ञान वेत्ताओं नें सीमाओं को ठोस आधार प्रदान किया हरितक्रांति के सफल क्रियान्वयन के कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जाने वाली रासायनिक एवं कीट नाशक दवायें यंत्रीकरण इत्यादि का वृहदस्तर पर प्रयोग किया गया, परिणाम स्वरूप वनों की अवैध अंधाधुंध कटाई और शहरीकरण जैसी समस्याओं का जन्म हुआ। एक ओर लाभ तो दूसरी और हानि उठानी पड़ी।

विकास दर के विरोधी अर्थ श्शास्त्रियों की सोच है कि ‘सफल राष्ट्रीय उत्पाद की वृद्धि और पर्यावरण में सीधा संबंध है। शून्य किवा क्रम को र्यावरणीय संतुलन का विकल्प माना जाता है। प्र्ष्यावरण की समस्या किसी एक राज्य अथवा राष्ट्र की सौगात नहीं है। वरन् विश्व की समस्या है। इसके हल हंतु प्रयुक्त नीतियों की शीघ्र एवं पुनः विश्लेषण अपेक्षित है। दीर्घकालीन एवं स्थायी विकास हेतु प्रकृति की प्रदूषण ग्राह्य क्षमता का सम्मान करना होगा। कृषि एवं उघोग में प्रयुक्त प्रोद्योगिकी में उपर्युक्त परिवर्ततन करना होगा, जिसने पर्यावरण के पतन में प्रमुख भुमिका आद की है।

पयार्वरण असंतुलन में मानव का भैतिकवादी दृष्टिकोण भी बहुत हद तक उत्तरीदायी है। मानव की अधिक उपयोग प्रवृत्त्ति ने उसके प्रकृति से दर कर दिया विकसित होते परिग्राही समाज ने प्रकृति द्वारा प्रदत्त पूंजी को आय का स्त्रोत मान किलया। पर्यावरण की गुणवत्ता को अक्षुण्ण बनाने के लिए इस भेगवादी प्रवृत्ति को तिलाजलि देना होगा। एवं जीवन के उद्देश्यों को प्रकृति के इर्द-गिर्द ही जाने की आवश्यकता है। पर्वावरण की मौजुदा संकट भौतिकवादी प्रवृत्ति एवं तीव्र औद्योगिकरण का ही परिणाम है। अगर पृथ्वी स्वस्थ नही तो मानव भी स्वस्थ नहीं होगा, इस दर्शन को व्यवहार में लाना ही समीचीन है, इस हेतु समन्वयात्मक दृष्टिाकोण को विकसित करना होगा। मानव संस्थाऐं, सरकारी राजनैतिक संस्थाएं, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, अत्यात्मिक संगठन एवं प्रकृति प्रेमी समाज सेवी संस्थाएं पृथ्वी के भविष्य को निर्धारित कर रही है।

निरंतर घूमते समय चक्र के साथ-साथ मानव की सोच में भी परिवर्तन हुआ। क्षति ग्रस्त पर्यावरण की दने के रूप में हो रही मौत के ताण्डव ने आज हमे सोचनें पर मजबूर कर दिया है। इस विनाश गति के चलते, मानव अस्तित्व कितना और कब तक सुरक्षित रह सकेगा? परिणामतः अनेक प्रकृतिविदों ने कई संस्थाओं को गणित हमारा मार्ग प्रशस्त किया है सरकार भी इस दिशा में गंभीरता से निर्णय ले रही है। कलकत्ता में न्यायालय के आदेश पर 216 टेनरीज को बन्द करने के निर्देश पारित करना आपके आप में एक एतिहासिक निर्णय है जिसका हमें दिल खोलकर स्वागत करना चाहिए। विद्यतु ऊर्जा उद्यागों की आत्मा है तथा आधुनिक जीवनशैली की रीढ़ है। इसी ऊर्जा की प्राप्ति के लिए सतत् प्रवाहत नदियों के वेग को बाधकर बड़े-बड़े जल विद्युत केन्द्र स्थापित किया जाते हैं। इससे भी वन क्षेत्र क्षतिग्रस्त होता है। मानव अधिकारों के प्रति सजग एंव सामाजिक कार्यकर्ता की श्रेणी में आने वाले पर्यावरण विद् सुन्दरलाल बहुगुणा एंव मेधापाटरक ने इस ओर प्रकृति प्रेमियों एंव सरकार का ध्यान आकर्षित कराया। कभी वनों का अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण का क्षति पहुंचती है, तो कभी परमाणु परीक्षण के द्वारा। वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य की पुष्टि की है कि, परमाणु परीक्षणें (चाहे वे शांतिकाल में ही क्यों न किये गयों हो) में ही वातावरण और जल में धुला विषैला तत्व स्ट्रांश्यिम-90 हमारे लिए ल्यूफेमिया और ब्रेन ट्यूमर का कारण बन रहा है। इन परीक्षणें के परिणाम स्वरूप निकली रेडियोधर्मी किरणें हमें कैंसर की भयावही सौगाते दे रहीं है। स्थिति यहां तक आ पहुंची कि सामाचार पत्रों में एक ही पृष्ठ पर एक से अनेक इन घटनाक्रमों से संबंधित समाचार पत्र के को मिलते हैं। उदाहरण स्वरूप समाचार पत्र के पृष्ठ पर ही (1) बढते प्रदूषण से बच्चों की सेहत चौपट (2) बढ़ते प्रदूषण से जीवाणु नाशक क्षमा खो चुकी है पवित्र गंगा नदी (3) 6 अरब की सफाई योजना निष्प्रभावी (4) प्रदूषण से बेतवा को मुक्ति हेतु हाई कोर्ट में याचिका उक्त सभी समाचारों के बाद भी यदि नहीं जाने तो…?

पर्यावरण प्रकृति का बैंक है जो वर्तमान में निरंतर दूषित हो रहा है, इसके व्यापाक प्रभाव से ओजोन परत भी क्षतिग्रस्त हो रही है, जिसके फलस्वरूप सूर्य की पराबैंगनी किरणों के दुष्परिणाम से त्वचा कैंसर का खतरा पैदा हो चुकी है। इसकी पुष्टि भी वैज्ञानिकों द्वारा की गई है।

पर्यावरण को प्रदूषण से बचाना ही आज की महती आवश्यकता है। विशेषज्ञों का राय है कि तर्क-विकास का पर्यावरण संरक्षण से मेला बिठा पाना कठिन नहीं है इसके लिए सरकार सजग और प्रयन्तशील है। 5 जून 1981 को पर्यावरण नियोजन एवं समन्वयात्मक संगठन नामक संस्था गठित की गई है। यह संस्था निश्चित करेगी कि पर्यावरण की रणनीति के अनुसार ही विकास हो उद्योगों में नेगेटिव आयन जनरेटर के द्वारा दूषित वायु में उपस्थित प्रदूषण कण, धूल, पोलेनग्रेनः गंध, वायरस, बैक्टिरिया को क्षण भर में स्वच्छ कर सकते हैं। साथ ही वायु मंडल आयन असन्तुलन व टेलीविजन के विकिरण को खत्म कर सकते है। जंगल की अवैध कटाई को रोकना ही श्रेयस्कर है। फारेस्ट का तात्पर्य केवल ‘फॉर-रेस्ट’ ही नहीं समझना चाहिए। अपितु ये परिभाषित करते हैं:-

F – Food, Fodder
Ο – Oxygen
R – Rain (Water)
E – Environment (Energy)
S – Shelter
T – Temperature

इसे हमे समझाना चाहिए। वन, वर्यावरण एवं प्रकृति से फले-फुले आदर्श ग्राम प्रसिद्ध व समाजसेवी श्री अण्णाहजारे का ग्राम रालेगांव, महाराष्ट्र एवं अलवर जिले के थाना गाजी ग्राम जो पर्वावरण चेतना और सजगता का प्रत्यक्ष प्रणाम है। इसी प्रकार सरकार द्वारा प्रदत्त वृक्षमित्र, वृश्री पुरूस्कार इस दिशा में सराहनीय प्रयास है। पर्यावरण में हुई क्षति की लागत को गुणात्मक रूप में मापना या परिभाषित करना अंसभव है। पवित्र गंगा या घाटियों के प्राकृति सौन्दर्य को दूषित करने की लागत क्या हो सकती है?

क्या भोपाल गैस त्रासदी और रूस की चरनो बिल दूर्घटनाओं में हुई जनहानि को मापा जा सकता है? कोई भी सत्ता पर्यावरण की तगृसदी से हुये नुकसान की भरपाई नहीं कर सकेगी। राहत के नाम पर चंद राशि पकड़ा देना ही समाधान नहीं है। किंतु यह भी सर्व विदित है कि-

उजड़ते वन, घटता जीवन।
लगते वन, सुरक्षित जीवन ।।

इस क्षेत्र में हमारे पथ प्रदर्शक चिपको आंदोलन के जनक सुन्दर लाल बहुगुणा और विश्व प्रसिद्ध पक्षी विशेषज्ञ डॉ. सलीम अमी के आदर्शों के अपनाकर पर्यावरण के अस्तित्व को स्थिरता प्रदान करें। एक नये उदयीमान नाम ग्रेटा थनवर्ग को भी अब लोग जानने लगे हैं। ज्ञात हो कि……

वृक्ष हमारे बुजुर्ग हैं और पौधे हमारे बच्चे।
करें इनकी रक्षा हम, ये है हमारे मित्र सच्चे ।।

अच्छा तो फिर इसे बचने के लिए हम गृहणियां क्या कर सकतीं हैं ?

हम नारियों में भी बदलाव लाने की शक्ति है आओं एक कदम उठाकर हम इस धरती की रक्षा के लिए और अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए नीचे बताए गए छोटे और सरल और उपाय कर सकते हैं-

अपने जीवन मैं कम से कम पांच फलदार पेड़ लगायें उसकी देखभाल करें।
संविधान के अनुच्छेद 51A (g) के तहत अपने आसपास के पेड़ों को अवैध कटाई से रोकें।
नदी नालों को प्रदूषित न करें।
सभी गृहणियां घर के कचरे को यहाँ वहां न फेंककर नगर निगम को सोंपें इस कचरे से वो जेविक खाद बनाते हैं
अधिक से अधिक प्राकृतिक उत्पाद का उपयोग करें।
सौर उर्जा को बढ़ावा दें, ए.सी व हीटर का उपयोग अत्यावश्यकता पर ही करें।
अनावश्यक घर की लाइट्स, टीवी, पंखे चलते न छोड़ें
मांसाहर से बचें ।
सिंगल-यूज प्लास्टिक की पन्नियों प्लास्टिक बोतल का उपयोग नहीं करें ।
जब भी संभव हो सार्वजनिक परिवहन या पैदल चलकर अपने कार्यों को करें।
पर्यावरण संरक्षण से वायु, जल और भूमि प्रदूषण कम होता है।
जैव विविधता (बायोडायवर्सिटी), की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण का संरक्षित होना जरुरी है।
ग्लोबल वार्मिंग जैसे हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए हमारी पृथ्वी के पर्यावरण को हमें स्वच्छ रखना ही होगा ।

आओ मिलकर प्रण लें कि अपने जीवन काल में हम पांच वृक्ष पूर्वजों के नाम पर अवश्य लगायेंगे ओर उन्हें बचायेंगे भी

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