पन्ना नेचर कैंप के 15 गौरवशाली वर्ष हुए पूरे, यह जश्न मनाने का समय

  • अब तक कुल 365 कैंप आयोजित हो चुके, जिसमें 11 हजार से अधिक प्रतिभागी शामिल हुए
  • प्रतिभागियों ने प्रकृति की इस पाठशाला में जंगल की निराली दुनिया को समझा और निहारा

।। आर. श्रीनिवास मूर्ति, तत्कालीन क्षेत्र संचालक ।।

पन्ना। जनसमर्थन से बाघ संरक्षण की अभिनव सोच को मूर्त रूप देने की मंशा से पन्ना नेचर कैंप की शुरुआत हुई थी, जिसके 15 गौरवशाली वर्ष आज पूरे हो रहे हैं। निश्चित ही यह अत्यंत प्रसन्नता और गर्व की बात है कि वर्ष 2010 में आज के ही दिन मध्य प्रदेश स्थापना दिवस के पावन अवसर पर शुरू किए गए “पन्ना नेचर कैंप” ने अपने 15 वर्ष पूरे कर लिए हैं। 

यह देखकर और भी प्रसन्नता हो रही है कि नेचर कैंप के आयोजन का सिलसिला अभी भी अनवरत जारी है। भारत में किसी भी टाइगर रिजर्व के इतिहास में यह उपलब्धि अपने आप में अनूठी और बेमिशाल है। यह पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन और पन्ना के लोगों के लिए अत्यंत गौरव का क्षण है। पन्ना नेचर कैंप के अब तक कुल 365 कैंप आयोजित किए जा चुके हैं जिसमें 11 हजार से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लेकर जंगल की निराली दुनिया को निकट से देखा और इसके सौंदर्य को निहारा है।

आख़िरकार पन्ना नेचर कैंप जैसे कार्यक्रम को शुरू करने की जरुरत क्यों पड़ी ? यह सर्व विदित है कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था। उस समय पन्ना के लोग बेहद निराश और आक्रोशित थे। वे यह कहने कहने लगे थे कि जब यहाँ बाघ ही नहीं बचे तो फिर टाइगर रिज़र्व का औचित्य ही क्या है, इससे पिंड छूटना चाहिए। ऐसी भावना इसलिए भी थी क्योंकि स्थानीय लोगों को पार्क को निकट से देखने और समझने का कभी मौका नहीं मिला। स्थानीय लोग पन्ना टाइगर रिजर्व को स्थानीय विकास में सबसे बड़ी बाधा मानने लगे थे।

इन परिस्थितियों के बीच तब तत्कालीन क्षेत्र संचालक आर. श्रीनिवास मूर्ति ने पुणे के संजय ठाकुर की मदद से एक परियोजना तैयार की। उन्होंने भोपाल से मंज़ूरी ली और कार्यक्रम के लिए डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया को शामिल किया। पहला उद्घाटन शिविर 1 नवंबर 2010 को मध्य प्रदेश के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित किया गया था और डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया के महासचिव रवि सिंह ने इस अवसर पर अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई थी। प्रतिभागियों को एक टाटा 407 वाहन में ले जाया गया, जिसमें बैठने की माकूल व्यवस्था की गई थी। आगे चलकर एनएमडीसी मझगवां ने इन शिविरों के संचालन हेतु एक 34 सीटों वाली बस प्रदान कर दी। स्वर्गीय श्री अंबिका खरे और श्री देवदत्त चतुर्वेदी, दोनों सेवानिवृत्त शिक्षकों ने शिविरों की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

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Source: Panna Stories

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